श्रौत-स्मार्त परम्परा

श्रौतस्मार्त परंपरा परिभवं संवीक्ष्य यो व्याकुलः,
पूर्णं ब्रह्मसनातनं श्रुतिनुतं,शून्यादिकं कल्पना।
याथार्थ्यं परिबोधितुं भुवितले यो भारते भारतः,
वंदे तं यतिरूपिणं सुरगुरुं श्रीशंकरंशंकरम्।।2

श्रौत स्मार्त परंपरा के परिभव को देखकर जो व्याकुल हो उठे,तथा घोषणा कर दिये कि श्रुतियों के द्वारा वंदित,श्रुतियों के द्वारा प्रतिपादित,सनातन ब्रह्म पूर्ण है,शून्यवादियों का मत तो कल्पना पूर्ण भ्रान्ति मात्र है,इस प्रकार वास्तविकता का परिबोधन कराने के लिये जो इस भूतलस्थ भारतवर्ष में ज्ञानप्रसार हेतु प्रवृत्त हुए,संन्यासाश्रमोद्धारक, देवों के भी आचार्य,कल्याण कर्ता भगवान शंकराचार्य की हम वंदना करते हैं ।

जो लोग वर्णाश्रम को नही स्वीकारते ,
जो लोग स्वधर्म का पालन नही करते ,
जो लोग ब्राह्मणों को कोषते रहते हैं ,
जो लोग स्मार्त परंपरा को छोड़ के मन माना करते हे ,

वोही लोग आगे जाके फ़र्ज़ी बाबा औ के चक्कर मे पड़ जाते हे .
और जीवन पाखंड में बिता देते हे .
वोही लोग नास्तिक से ज्यादा सनातन धर्म का नुकसान करते हे .

सनातन धर्म का मूल वेद हे ।

वैदिक जीवन जीने का उपचार , पद्धति ही स्मार्त परंपरा हे .

स्मार्त ही मूल परंपरा हे .

श्री गणेश , शाक्त , वैष्णव , शंकर , कृष्णपंथी , राम पंथी आदि आदि नये नये पंथ ऐसी कोई अलग पंथ पद्धति नही होती . जिन्हों ने जो गुरु बनाये , उन गुरु ने दिए मंत्र दीक्षा के मंत्र के अधिस्ठात्री देव को लेके सब मंदिर और पंथ बना ने लगे , यही गरबड़ हुई , अब अज्ञान वस  व्यक्ति उनको ही अपना मत कहने लगे .
हजारो सालो से इधर उधर पंथ बनते चले और सभी पंथी अपना अलग अलग भाष्य लिखते चले , और मत मतांतर बनते गये . सभी लोग होते तो धार्मिक ही हे , सभी हिंदू ही हे और श्रद्धावान ही हे , मगर विशुद्ध धर्म से दूर होते चले . मनमाना राग और मनमाना व्यवहार होते चले .

फिर कहेंगे हिंदू में एकता क्यो नही ? वामपंथी औ ने छेड़छाड़ की हे विगेरे विगेरे कह के निरास होते रहेंगे . क्यो की हर एक पंथी ने अपना अलग अलग भाष्य उनके अनुरूप बनाते चले .

तो उपाय क्या है ?  हमे विचार करना होगा , अगर धर्म की रक्षा करना चाहते हे तो शुद्ध धर्माचरण पर चलना होगा .

क्या हे हमारा वैदिक सनातन धर्म के आचरण परंपरा ? जिसे हर एक हिंदू अपना शके ?

उत्तर :  स्मार्त परंपरा .

1 , पूजा प्रकाष मार्गदर्शन पुस्तक में स्मार्त परंपरा की पूजा पद्धति हे .

2 , जिस के घर पंचायतन पूजा नही हे वो स्मार्त नही हे , तो सभी हिंदू इसे समजे , पंचायतन पूजा अवष्य रखे .

3 , संसारी ब्राह्मण को ही गुरु स्वीकारे , (  विशुद्ध कुलीन कर्मकांडी ब्राह्मण )

4, ब्राह्मण सनातन वैदिक मूल पीठ शंकराचार्य निमित ब्रह्मऋषि दंडी स्वामी को ही गुरु बनाये .

5, किसीभी एक भगवान को लेके बनाये पंथ से दूर रहे ये स्मार्त नही हे , ये मूल नही हे , स्मार्त में पांचो देव का एक ही भाव हे , स्मार्त ही मूल पद्धति हे .

6 , गुरु ने दिये मंत्र दीक्षा जप के लिये हे अलग पंथ बनाने के लिये नही .

7 , जो कोई हिंदू चाहते हे हिंदू में एकता हो तो ये रास्ते पर चले और अपने कुटुम्ब को भी बचाये .

चार शंकराचार्य पीठ सिर्फ शंकरपीठ नही हे ये समजो पहले .
ये चारों पीठ वैदिक पीठ हे और वैदिक आचरण ही स्मार्त परंपरा हे .

।। जय श्री राम ।।
।।जय महादेव।।

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